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सिनेमा एक एहसास है.. जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है.. इसकी कोई भाषा नहीं होती.. इसकी कोई सरहद नहीं होती.. 'द रियल सिनेमा' एक प्रयास है विश्व की किसी भी भाषा में बनी श्रेष्ठ फिल्मो के संकलन का.. आशा है आपका सहयोग मिलेगा

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Saturday, August 23, 2008

तंदूर जलाके झूम झूम....

आइए आज सुनते है गुलज़ार साहब का लिखा एक और बेहतरीन गीत.. फिल्म है 'झूम बराबर झूम' हालाँकि शाद अली की पिछली दो फ़िल्मे जिनके गीत गुलज़ार साहब ने लिखे थे, 'साथिया' और 'बंटी और बबली' के गीत बहुत हिट हुए थे.. पर 'झूम बराबर झूम' के संगीत ने निराश किया.. मगर गुलज़ार साहब वहा भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे.. मसलन इस फिल्म का टाइटल सॉंग कुछ यू शुरू होता है..

ओ बीच बाज़ारी दंगे लग गये, दो तल्वारी अखियों के, मखना..
ओ जान कटे के जिगर कटे अब इन दो धारी अखियों से, मखना...

आज चाँदनी कुटेंगे
आसमान को लूटेंगे..
चल धुआ उड़ा के झूम...

इसी गीत में कुछ पंक्तिया तो कमाल लिखी है गुलज़ार साहब ने जैसे देखिए..

यह चाँद का चिकना साबुन कुछ देर में गल जाएगा ...

अब ये देखिए क्या ग़ज़ब ढाया है गुलज़ार साहब ने..
मकई की रोटी गूड रख के, मिसरी से मीठे लब चख के
तंदूर जलाके झूम झूम....

अब बताइए तंदूर जलाके भी झूमने की बात की जा रही है.. कहने का मतलब है की रोज़मर्रा के जो शब्द है.. उन्हे भी कितनी खूबसूरती से पिरोया है..गुलज़ार साहब ने..

खैर मैं बात करता हू उस गाने की जो मैं आज आपको सुनाने जा रहा हू.. ये गीत भी इसी फिल्म का है 'बोल ना हल्के हल्के' पूरी फिल्म में यही एक गीत संपूर्ण नज़र आता है इसलिए इसके बोल के साथ साथ में यहा वीडियो भी दे रहा हू.. क्योंकि जीतने अच्छे बोल लिखे है गुलज़ार साहब ने शंकर-एहसान- लॉय ने भी पूरी सिद्दत से इसमे संगीत दिया है.. और उतनी मधुरता घोली है राहत फ़तेह अली ख़ान और महालक्ष्मी अय्यर ने अपनी आवाज़ देकर.. और शाद अली ने भी इस गीत को बहुत ही सुंदर तरीके से फिल्माया है.. अब मैं कितना सही हू.. ये तो आप ये गाना देखकर ही बताइए...

1 comments:

डा. अमर कुमार said...


वाकई यह लाइनें बड़ी सोणी हैं,
दिल झूम झूम होना ही है, यह सुन कर !


बड़े ऎइडिया का ब्लाग बन रहा है, चुपके चुपके.. चोरी चोरी !

जल्दी से मेरे को खुश कर दे, वरना ताऊ को बता दूँगा, तेरा ऎइडिया !