यहाँ का जाल देखिए.दूसरी पंक्ति-जहाँ से तू पास हो..अगर इसे अँग्रेज़ी का पास मानें टू भी मज़ा है और हिन्दी का पास मानें टू भी मज़ा है.एक तीर दो शिकार..गुलज़ार साब की कलम दो धारी तलवार :)
और सबसे बड़ा जादू जो हमेशा सबको चकित करता है वो है फिल्म लेकिन का गीत-यारा सीलि सीलि....
इसके बीच एक पंक्ति आती है-
बाहर उजाड़ा हैं
अंदर वीराना
और ज़्यादातर लोग उजड़ा को उजाला ही सुनते हैं.अर्थ भी सही निकलता है.और मज़े की बात ये की वो सारे वेबसाइट जहाँ गानों के बोल लिखे मिलते हैं वो भी इसे उजाला ही लिखते हैं.
तो ये कमाल है गुलज़ार साब की कलम का.शब्दों के साथ साथ साउंड पर भी इतनी पकड़ है उनकी कि शब्दों के साथ जादू कर देते हैं.और मुझे यक़ीन है कि आपमें से भी कई इस तिलिस्म में फँस चुके होंगे. :)
Saturday, August 23, 2008
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1 comments:
सबसे बड़ी बात यह कि, समपूरन सिंह गुलज़ार बन कर जो शाश्वतता पा सके हैं, वह बिरले ही हासिल कर पाते हैं ।
मोरा गोरा रँग लई ले से चल कर उनका सफ़र कितनी सफ़ाई से चप्पा चप्पा चरखा चले या जय हो तक तय होता रहा है ।
ही इज़ ग़ुलज़ार इन अ रीयल सेन्स !
पर मेरा टेम्पलेट मिल गया है तुम्हारे हवाल से, क्या करें !
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